'सूरज झुलसा रहा है, बारिश झोंकों से बरस रही है, और दोनों हमारी हड्डियों में गहरी काट रहे हैं', हम अभी भी भूतों की तरह अपना बोझ ढोते हैं, लेकिन मर गए हैं और वर्षों से डरे हुए हैं। ' (तवोय में 29.05.1942 को डच मजबूर मजदूर एरी लोडविज्क ग्रेंडेल द्वारा लिखित कविता 'पगोडेरोड' का एक अंश)

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